india at critical situation

देश में आर्थिक इमरजेंसी के हालात पैदा होते लग रहे हैं। बुधवार को एक डॉलर की कीमत 68 रुपए के पार पहुंच गई। दस ग्राम सोने की कीमत भी 34000 रुपये हो गई। शेयर मार्केट भी गोते लगा रहा है।
तात्‍कालिक तौर पर लोक सभा में खाद्य सुरक्षा विधेयक (फूड सिक्‍योरिटी बिल ) को मंजूरी मिलने के बाद चालू खाते का घाटा बढऩे की आशंका से रुपया और शेयर बाजार दोनों लुढ़क रहे हैं। 1,320 अरब रुपये की खाद्य सुरक्षा योजना के जरिए देश की तकरीबन 67 प्रतिशत जनता को रियायती कीमतों पर अनाज उपलब्ध कराने की कोशिश की जाएगी। खाद्य मंत्री के. वी. थॉमस की मानें तो इस योजना के लिए एक साल में 620 लाख टन अनाज की खरीदारी करनी होगी। इस बिल से बाजार को क्‍यों है डर? इसका जवाब इन तथ्‍यों में छिपा है-
 
फूड सिक्‍योरिटी बिल को लागू करने पर अनुमानित खर्च ये है- 
2013-14 1.25 लाख करोड़ रुपये
2014-15 1.35 लाख करोड़ रुपये
2015-16 1.50 लाख करोड़ रुपये
 
देश की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि एक नए खर्च का इतना बड़ा बोझ आसानी से सह जाए। सरकार का कुल खर्चा 16.90 लाख करोड़ रुपये है, जबकि कुल आमदनी मात्र 12.70 लाख करोड़ रुपये है। वित्तीय घाटा 5.2 प्रतिशत (जीडीपी की तुलना में) है और यह निश्चित तौर पर और बढ़ने वाला है। सरकार ने 3 लाख करोड़ रुपये सब्सिडी देने का भी लक्ष्‍य तय कर रखा है। ऐसे में बाजार का डर नाहक नहीं है।
 
चालू घाटा पिछले साल जीडीपी का ५ फीसदी हो गया है जबकि १९९१ में चरमरा गई आर्थिक स्थिति के दौरान यह घाटा महज २.५ फीसदी था। २०१२-१३ के दौरान बाहरी कर्ज ३९० अरब डॉलर का है। अल्प अवधि कर्ज १७२ अरब डॉलर का है जिसे मार्च २०१४ तक देना है। यदि चालू खाते में २५ अरब डॉलर नहीं आए तो भुगतान संतुलन का संकट खड़ा हो जाएगा। सिन्हा ने कहा कि राजकोषीय घाटा कम करने के लिए ही सरकार ने योजनागत आवंटन में १ लाख करोड़ की कटौती कर दी है जबकि इतनी ही राशि की योजनाएं अधूरी पड़ी हैं। 
 
क्‍या होगा असर
 
फूड सिक्‍योरिटी बिल के जरिए सरकार जनता की भलाई करने का दावा कर रही है, लेकिन असल में इससे जनता पर बोझ पड़ने वाला है। योजना के लिए खर्च का इंतजाम करने के लिए सरकार को आमदनी बढ़ानी होगी। इसके लिए टैक्स कलेक्शन बढ़ाना होगा। टैक्‍स कलेक्‍शन बढ़ाने के लिए ज्‍यादा से ज्‍यादा लोगों को आयकर के दायरे में लाने और आयकर चोरी रोकने की कवायद सालों से चल रही है। लेकिन यह लगभग पूरी तरह बेअसर रही है। ऐसे में ज्‍यादा संभावना इस बात की है कि सरकार लोगों पर टैक्‍स का बोझ बढ़ाए। वैसे भी, सरकार की फूड सिक्‍योरिटी योजना से 67 फीसदी लोगों को रोज करीब तीन रुपये का फायदा होगा, लेकिन जनता पर रोजाना करीब 150 रुपये का बोझ बढ़ेगा।
बुधवार को रुपया ने गिरने का नया रिकॉर्ड बनाया एक डॉलर के मुकाबले इसकी कीमत 68 के पार चली गई। रुपये की हालत अब कुछ ज्यादा ही गंभीर नजर आ रही है। भारतीय मुद्रा की कीमत मंगलवार को भी '66' का आंकड़ा भी पार करते हुए 66.24 रुपये प्रति डॉलर के ऐतिहासिक न्यूनतम स्तर पर आ गई थी।  
 
गिरावट क्‍यों 
 
चालू माह की जल्द समाप्ति के मद्देनजर आयातकों खासकर तेल रिफाइनरी कंपनियों एवं बैंकों की ओर से अमेरिकी डॉलरों की भारी मांग रहने के कारण ही रुपये की हालत और भी ज्यादा खस्ता हो गई।  विदेशी फंडों द्वारा भारत के शेयर बाजारों से अपना पैसा लगातार निकालना। खाद्य सुरक्षा बिल से राजकोषीय घाटा बढ़ने और भारत की रेटिंग गिरने का अंदेशा। 
 
असर क्‍या
 
पेट्रोल-डीजल महंगा होगा
रोज कर्रा की जरूरत की सभी चीजों की महंगाई बढ़ेगी। लोगों का जीवन स्‍तर बेहतर होने के बजाय कमतर होगा। उनकी बचत कम होगी। उनके पास खर्च करने के लिए पैसे कम होंगे। अंतत: संपूर्ण अर्थव्‍यवस्‍था को इसका नुकसान उठाना पड़ेगा विदेश में पढ़ाई पर ज्‍यादा खर्च आएगा विदेश घूमना महंगा पड़ेगा
रुपये की कीमत और सेंसेक्‍स में गिरावट का फायदा किसी को हो रहा है तो सोने यानी गोल्‍ड को। सोने का भाव बढ़ रहा है। कुछ ही समय पहले 30 हजार से नीचे जा चुका सोना बुधवार को 34000 रुपये प्रति दस ग्राम के पार चला गया। वह भी तब जब घरेलू बाजार में ज्वैलरी की मांग नहीं के बराबर निकल रही है। मंगलवार को भी सोने के भाव में 500 रुपये की तेजी आई थी। दिल्ली सराफा बाजार में नौ माह के लंबे अंतराल के बाद सोने का भाव फिर से इस स्तर पर पहुंचा है। एमसीएक्स पर अक्टूबर महीने के वायदा अनुबंध में सोने के दाम बढ़कर रिकॉर्ड 33,788 रुपये प्रति दस ग्राम हो गए थे।
 
क्‍यों चमक रहा है सोना 
 
शेयर बाजार में ऊंचे भाव के कारण
रुपये के मुकाबले डॉलर की रिकॉर्डतोड़ मजबूती से
 
क्‍या होगा असर
 
सोने की मांग और घटेगी। वायदा बाजार में मौजूदा स्तरों पर निवेशकों को सोने में निवेश से परहेज ही करना चाहिए।
रुपया जहां लगातार नीचे जा रहा है, वहीं शेयर बाजार भी गोते लगा रहा है। बुधवार को भी बाजार में अच्‍छे संकेत नहीं दिख रहे। मंगलवार को भी रुपया शेयर बाजार को ले डूबा था। बॉम्बे शेयर बाजार का सेंसेक्स तकरीबन 590 अंकों का गहरा गोता खाने पर मजबूर हो गया था। मंगलवार को सेंसेक्स अंतत: 590.05 अंकों अथवा 3.18 फीसदी की भारी गिरावट के साथ 18,000 से नीचे 17,968.08 अंक पर बंद हुआ था। 
 
क्‍यों गोते खा रहा सेंसेक्‍स
 
रुपये की लगातार कमजोरी के चलते। रुपये के लुढ़क कर नए न्यूनतम स्तर पर आने की खबर मिलते ही विदेशी फंडों।  की बिकवाली की गति तेज हो जाती है। विदेशी फंडों द्वारा घरेलू बाजारों से अपनी पूंजी निकाले जाने के चलते लोकसभा में खाद्य सुरक्षा विधेयक के पारित हो जाने के कारण राजकोष पर सब्सिडी बोझ के काफी बढ़ जाने को लेकर जताई जा रही चिंताओं के चलते बढ़ी शेयरों की बिकवाली की वजह से  कई विदेशी शेयर बाजारों में गिरावट का भी रहा असर
 
क्‍या हुआ असर 
 
मंगलवार को बाजार में भारी गिरावट के कारण निवेशकों के 1.7 लाख करोड़ रुपये स्वाहा हो गए शेयर बाजार लगातार गिरता रहा तो निवेशकों का भरोसा टूटेगा और इसका सीधा असर कम निवेश के रूप में सामने आएगा।
निवेश नहीं होगा तो इसका सीधा असर विकास में कमी और अर्थव्‍यवस्‍था की कमजोरी के रूप में दिखेगा।

तुलसीदास

गोस्वामी तुलसीदास [1497 - 1623] एक महान कवि थे। उनका जन्म राजापुर गाँव (वर्तमान बाँदा जिला) उत्तर प्रदेश में हुआ था। अपने जीवनकाल में तुलसीदास जी ने 12ग्रन्थ लिखे और उन्हें संस्कृत विद्वान होने के साथ ही हिन्दी भाषा के प्रसिद्ध और सर्वश्रेष्ठ कवियों में एक माना जाता है। तुलसीदास जी को महर्षि वाल्मीकि का अवतार भी माना जाता है जो मूल आदि काव्य रामायण के रचयिता थे। श्रीराम जी को समर्पित ग्रन्थ श्रीरामचरितमानस वाल्मीकि रामायण का प्रकारान्तर से ऐसा अवधी भाषान्तर है जिसमें अन्य भी कई कृतियों से महत्वपूर्ण सामग्री समाहित की गयी थी। श्रीरामचरितमानस को समस्त उत्तर भारत में बड़े भक्तिभाव से पढ़ा जाता है। इसके बाद विनय पत्रिकातुलसीदासकृत एक अन्य महत्वपूर्ण काव्य है।

जन्म

उत्तर प्रदेश के चित्रकूट जिले से कुछ दूरी पर राजापुर नामक एक ग्राम है, वहाँ आत्माराम दुबे नाम के एक प्रतिष्ठित सरयूपारीण ब्राह्मण रहते थे। उनकी धर्मपत्नी का नाम हुलसी था। संवत्1554 के श्रावण मास के शुक्लपक्ष की सप्तमी तिथि के दिन अभुक्त मूल नक्षत्र में इन्हीं भाग्यवान दम्पति के यहाँ इस महान आत्मा ने मनुष्य योनि में जन्म लिया। प्रचलित जनश्रुति के अनुसार शिशु पूरे बारह महीने तक माँ के गर्भ में रहने के कारण अत्यधिक हृष्ट पुष्ट था और उसके मुख में दाँत दिखायी दे रहे थे। जन्म लेने के बाद प्राय: सभी शिशु रोया ही करते हैं किन्तु इस बालक ने जो पहला शब्द बोला वह राम था। अतएव उनका घर का नाम ही रामबोला पड गया। माँ तो जन्म देने के बाद दूसरे ही दिन चल बसी बाप ने किसी और अनिष्ट से बचने के लिये बालक को चुनियाँ नाम की एक दासी को सौंप दिया और स्वयं विरक्त हो गये। जब रामबोला साढे पाँच वर्ष का हुआ तो चुनियाँ भी नहीं रही। वह गली-गली भटकता हुआ अनाथों की तरह जीवन जीने को विवश हो गया।

बचपन

भगवान शंकरजी की प्रेरणा से रामशैल पर रहनेवाले श्री अनन्तानन्द जी के प्रिय शिष्य श्रीनरहर्यानन्द जी (नरहरि बाबा) ने इस रामबोला के नाम से बहुचर्चित हो चुके इस बालक को ढूँढ निकाला और विधिवत उसका नाम तुलसीराम रखा। तदुपरान्त वे उसे अयोध्या ( उत्तर प्रदेश) ले गये और वहाँ संवत्‌1561 माघ शुक्ला पञ्चमी (शुक्रवार) को उसका यज्ञोपवीत-संस्कार सम्पन्न कराया। संस्कार के समय भी बिना सिखाये ही बालक रामबोला ने गायत्री-मन्त्र का स्पष्ठ उच्चारण किया, जिसे देखकर सब लोग चकित हो गये। इसके बाद नरहरि बाबा ने वैष्णवों के पाँच संस्कार करके बालक को राम-मन्त्र की दीक्षा दी और अयोध्या में ही रहकर उसे विद्याध्ययन कराया । बालक रामबोला की बुद्धि बड़ी प्रखर थी। वह एक ही बार में गुरु-मुख से जो सुन लेता, उसे वह कंठस्थ हो जाता। वहाँ से कुछ काल के बाद गुरु-शिष्य दोनों शूकरक्षेत्र (सोरों) पहुँचे। वहाँ नरहरि बाबा ने बालक को राम-कथा सुनायी किन्तु वह उसे भली-भाँति समझ न आयी।
ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, गुरुवार, संवत्1583 को 29वर्ष की आयु में राजापुर से थोडी ही दूर यमुना के उस पार स्थित एक गाँव की अति सुन्दरी भारद्वाज गोत्र की कन्या रत्नावली के साथ उनका विवाह हुआ। चूँकि गौना नहीं हुआ था अत: कुछ समय के लिये वे काशी चले गये और वहाँ शेषसनातन जी के पास रहकर वेद-वेदांग के अध्ययन में जुट गये। वहाँ रहते हुए अचानक एक दिन उन्हें अपनी पत्नी की याद आयी और वे व्याकुल होने लगे। जब नहीं रहा गया तो गुरूजी से आज्ञा लेकर वे अपनी जन्मभूमि राजापुर लौट आये। पत्नी रत्नावली चूँकि मायके में ही थी क्योंकि तब तक उनका गौना नहीं हुआ था अत: तुलसीराम ने भयंकर अँधेरी रात में उफनती यमुना नदी तैरकर पार की और सीधे अपनी पत्नी के शयन-कक्ष में जा पहुँचे। रत्नावली इतनी रात गये अपने पति को अकेले आया देख कर आश्चर्यचकित हो गयी। उसने लोक-लज्जा के भय से जब उन्हें चुपचाप वापस जाने को कहा तो वे उससे उसी समय घर चलने का आग्रह करने लगे। उनकी इस अप्रत्याशित जिद से खीझकर रत्नावली ने स्वरचित एक दोहे के माध्यम से जो शिक्षा उन्हें दी उसने ही तुलसीराम को तुलसीदास बना दिया। रत्नावली ने जो दोहा कहा था वह इस प्रकार है:
अस्थि चर्म मय देह यह, ता सों ऐसी प्रीति !
नेकु जो होती राम से, तो काहे भव-भीत ?
यह दोहा सुनते ही उन्होंने उसी समय पत्नी को वहीं उसके पिता के घर छोड दिया और वापस अपने गाँव राजापुर लौट गये। राजापुर में अपने घर जाकर जब उन्हें यह पता चला कि उनकी अनुपस्थिति में उनके पिता भी नहीं रहे और पूरा घर नष्ट हो चुका है तो उन्हें और भी अधिक कष्ट हुआ। उन्होंने विधि-विधान पूर्वक अपने पिता जी का श्राद्ध किया और गाँव में ही रहकर लोगों को भगवान राम की कथा सुनाने लगे।

श्रीराम से भेंट

कुछ काल राजापुर रहने के बाद वे पुन: काशी चले गये और वहाँ की जनता को राम-कथा सुनाने लगे। कथा के दौरान उन्हें एक दिन मनुष्य के वेष में एक प्रेत मिला, जिसने उन्हें हनुमान ‌जी का पता बतलाया। हनुमान ‌जी से मिलकर तुलसीदास ने उनसे श्रीरघुनाथजी का दर्शन कराने की प्रार्थना की। हनुमान्‌जी ने कहा- "तुम्हें चित्रकूट में रघुनाथजी दर्शन होंगें।" इस पर तुलसीदास जी चित्रकूट की ओर चल पड़े।
चित्रकूट पहुँच कर उन्होंने रामघाट पर अपना आसन जमाया। एक दिन वे प्रदक्षिणा करने निकले ही थे कि यकायक मार्ग में उन्हें श्रीराम के दर्शन हुए। उन्होंने देखा कि दो बड़े ही सुन्दर राजकुमार घोड़ों पर सवार होकर धनुष-बाण लिये जा रहे हैं। तुलसीदास उन्हें देखकर आकर्षित तो हुए, परन्तु उन्हें पहचान न सके। तभी पीछे से हनुमान्‌जी ने आकर जब उन्हें सारा भेद बताया तो वे पश्चाताप करने लगे। इस पर हनुमान्‌जी ने उन्हें सात्वना दी और कहा प्रातःकाल फिर दर्शन होंगे।
संवत्‌ 1607की मौनी अमावस्या को बुधवार के दिन उनके सामने भगवान श्रीराम पुनः प्रकट हुए। उन्होंने बालक रूप में आकर तुलसीदास से कहा-"बाबा! हमें चन्दन चाहिये क्या आप हमें चन्दन दे सकते हैं?" हनुमान ‌जी ने सोचा,कहीं वे इस बार भी धोखा न खा जायें, इसलिये उन्होंने तोते का रूप धारण करके यह दोहा कहा:
चित्रकूट के घाट पर, भइ सन्तन की भीर।
तुलसिदास चन्दन घिसें, तिलक देत रघुबीर॥
तुलसीदास श्रीराम जी की उस अद्भुत छवि को निहार कर अपने शरीर की सुध-बुध ही भूल गये। अन्ततोगत्वा भगवान ने स्वयं अपने हाथ से चन्दन लेकर अपने तथा तुलसीदास जी के मस्तक पर लगाया और अन्तर्ध्यान हो गये।

संस्कृत में पद्य-रचना

संवत्1628 में वह हनुमान जी की आज्ञा लेकर अयोध्या की ओर चल पड़े। उन दिनों प्रयाग में माघ मेला लगा हुआ था। वे वहाँ कुछ दिन के लिये ठहर गये। पर्व के छः दिन बाद एक वटवृक्ष के नीचे उन्हें भारद्वाज और याज्ञवल्क्य मुनि के दर्शन हुए। वहाँ उस समय वही कथा हो रही थी, जो उन्होने सूकरक्षेत्र में अपने गुरु से सुनी थी। माघ मेला समाप्त होते ही तुलसीदास जी प्रयाग से पुन: वापस काशी आ गये और वहाँ के प्रह्लादघाट पर एक ब्राह्मण के घर निवास किया। वहीं रहते हुए उनके अन्दर कवित्व-शक्ति का प्रस्फुरण हुआ और वे संस्कृत में पद्य-रचना करने लगे। परन्तु दिन में वे जितने पद्य रचते, रात्रि में वे सब लुप्त हो जाते। यह घटना रोज घटती। आठवें दिन तुलसीदास जी को स्वप्न हुआ। भगवानशंकर ने उन्हें आदेश दिया कि तुम अपनी भाषा में काव्य रचना करो। तुलसीदास जी की नींद उचट गयी। वे उठकर बैठ गये। उसी समय भगवान शिव और पार्वती उनके सामने प्रकट हुए। तुलसीदास जी ने उन्हें साष्टांग प्रणाम किया। इस पर प्रसन्न होकर शिव जी ने कहा- "तुम अयोध्या में जाकर रहो और हिन्दी में काव्य-रचना करो। मेरे आशीर्वाद से तुम्हारी कविता सामवेद के समान फलवती होगी।" इतना कहकर गौरीशंकर अन्तर्धान हो गये। तुलसीदास जी उनकी आज्ञा शिरोधार्य कर काशी से सीधे अयोध्या चले गये।

रामचरितमानस की रचना

संवत्‌ 1631 का प्रारम्भ हुआ। दैवयोग से उस वर्ष रामनवमी के दिन वैसा ही योग आया जैसा त्रेतायुग में राम-जन्म के दिन था। उस दिन प्रातःकाल तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस की रचना प्रारम्भ की। दो वर्ष, सात महीने और छ्ब्बीस दिन में यह अद्भुत ग्रन्थ सम्पन्न हुआ। संवत्‌ 1633 के मार्गशीर्ष शुक्लपक्ष में राम-विवाह के दिन सातों काण्ड पूर्ण हो गये।

तुलसीदास पर भारत सरकार द्वारा जारी डाक टिकट
इसके बाद भगवान् की आज्ञा से तुलसीदास जी काशी चले आये। वहाँ उन्होंने भगवान्‌ विश्वनाथ और माता अन्नपूर्णा को श्रीरामचरितमानस सुनाया। रात को पुस्तक विश्वनाथ-मन्दिर में रख दी गयी। प्रात:काल जब मन्दिर के पट खोले गये तो पुस्तक पर लिखा हुआ पाया गया-सत्यं शिवं सुन्दरम्‌ जिसके नीचे भगवान्‌ शंकर की सही (पुष्टि) Yes check.svg  थी। उस समय वहाँ उपस्थित लोगों ने "सत्यं शिवं सुन्दरम्‌" की आवाज भी कानों से सुनी।
इधर काशी के पण्डितों को जब यह बात पता चली तो उनके मन में ईर्ष्या उत्पन्न हुई। वे दल बनाकर तुलसीदास जी की निन्दा और उस पुस्तक को नष्ट करने का प्रयत्न करने लगे। उन्होंने पुस्तक चुराने के लिये दो चोर भी भेजे। चोरों ने जाकर देखा कि तुलसीदास जी की कुटी के आसपास दो युवक धनुषबाण लिये पहरा दे रहे हैं। दोनों युवक बड़े ही सुन्दर क्रमश: श्याम और गौर वर्ण के थे। उनके दर्शन करते ही चोरों की बुद्धि शुद्ध हो गयी। उन्होंने उसी समय से चोरी करना छोड़ दिया और भगवान् के भजन में लग गये। तुलसीदास जी ने अपने लिये भगवान्‌ को कष्ट हुआ जान कुटी का सारा समान लुटा दिया और पुस्तक अपने मित्र टोडरमल (अकबर के नौरत्नों में एक) के यहाँ रखवा दी। इसके बाद उन्होंने अपनी विलक्षण स्मरण शक्ति से एक दूसरी प्रति लिखी। उसी के आधार पर दूसरी प्रतिलिपियाँ तैयार की गयीं और पुस्तक का प्रचार दिनों-दिन बढ़ने लगा।
इधर काशी के पण्डितों ने और कोई उपाय न देख श्री मधुसूदन सरस्वती नाम के महापण्डित को उस पुस्तक को देखकर अपनी सम्मति देने की प्रार्थना की। मधुसूदन सरस्वती जी ने उसे देखकर बड़ी प्रसन्नता प्रकट की और उस पर अपनी ओर से यह टिप्पणी लिख दी-
आनन्दकानने ह्यास्मिञ्जङ्गमस्तुलसीतरुः।
कवितामञ्जरी भाति रामभ्रमरभूषिता॥
इसका हिन्दी में अर्थ इस प्रकार है-"काशी के आनन्द-वन में तुलसीदास साक्षात् चलता-फिरता तुलसी का पौधा है। उसकी काव्य-मञ्जरी बड़ी ही मनोहर है, जिस पर श्रीराम रूपी भँवरा सदा मँडराता रहता है।"
पण्डितों को उनकी इस टिप्पणी पर भी संतोष नहीं हुआ। तब पुस्तक की परीक्षा का एक अन्य उपाय सोचा गया। काशी के विश्वनाथ-मन्दिर में भगवान्‌ विश्वनाथ के सामने सबसे ऊपर वेद, उनके नीचे शास्त्र, शास्त्रों के नीचे पुराण और सबके नीचे रामचरितमानस रख दिया गया। प्रातःकाल जब मन्दिर खोला गया तो लोगों ने देखा कि श्रीरामचरितमानस वेदों के ऊपर रखा हुआ है। अब तो सभी पण्डित बड़े लज्जित हुए। उन्होंने तुलसीदास जी से क्षमा माँगी और भक्ति-भाव से उनका चरणोदक लिया।

मृत्यु

तुलसीदास जी जब काशी के विख्यात् घाट असीघाट पर रहने लगे तो एक रात कलियुग मूर्त रूप धारण कर उनके पास आया और उन्हें पीड़ा पहुँचाने लगा। तुलसीदास जी ने उसी समय हनुमान जी का ध्यान किया। हनुमान जी ने साक्षात् प्रकट होकर उन्हें प्रार्थना के पद रचने को कहा, इसके पश्चात् उन्होंने अपनी अन्तिम कृति विनय-पत्रिका लिखी और उसे भगवान के चरणों में समर्पित कर दिया। श्रीराम जी ने उस पर स्वयं अपने हस्ताक्षर कर दिये और तुलसीदास जी को निर्भय कर दिया।
संवत्‌ 1680 में श्रावण कृष्ण तृतीया शनिवार को तुलसीदास जी ने "राम-राम" कहते हुए अपना शरीर परित्याग किया।