लीजिए आ गया एक 'दिलवाला' रोबोटः जापान


जापान का पेपर रोबोट
जापान की सॉफ़्टवेयर कंपनी सॉफ़्टबैंक ने 'पेपर' नाम का एक ऐसा रोबोट बनाया है जो आपकी संवेदनाओं, जज़्बात को समझ सकता है.
'पेपर' रोबोट इंसानी भावनाओं को समझने के लिए अपने भीतर बने इमोशनल इंजन का इस्तेमाल करता है. साथ ही, इस रोबोट में एक ऐसा कृत्रिम ख़ुफ़िया तंत्र मौजूद है जो इंसान के हाव-भाव, इशारों और बात करने के अंदाज़ को पढ़ लेता है.
कंपनी का कहना है कि आप इस रोबोट से ठीक वैसे ही बातचीत कर सकते हैं जैसे अपने किसी दोस्त या रिश्तेदारों से करते हैं. कंपनी ने बताया कि यह रोबोट कई तरह के काम भी कर सकता है.
बिक्री के लिए यह बाज़ार में अगले साल उपलब्ध होगा. क़ीमत होगी 1,930 डॉलर.

संवेदनशील

सॉफ़्टबैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने संवाददाता सम्मेलन में बताया, "अब तक रोबोट के बारे में यही कहा जाता रहा है कि इनमें न कोई एहसास, न संवेदना और न ही दिल होता है."
उन्होंने आगे कहा, "मानव इतिहास में यह पहली बार होगा कि किसी रोबोट में दिल और संवेदनाएं भी होंगी."
जापान का पेपर रोबोट
कंपनी शुक्रवार से अपने दो स्टोर्स पर इस रोबोट के दो नमूने लोगों के सामने पेश करेगी, ताकि इच्छुक और उत्सुक लोग आकर इन्हें देख सकें, इनसे बातें कर सकें.
सॉफ़्टबैंक ने बताया कि कंपनी की देश भर में अपने कई दुकानों पर पेपर को लोगों के लिए रखने की योजना है.

बढ़ता बाज़ार

जापान दुनिया भर में रोबोट का सबसे बड़ा बाज़ार माना जाता है.
जापान का पेपर रोबोट
एक आकलन के अनुसार, साल 2012 में जापान का रोबोट से जुड़ा कुल कारोबार 8.4 अरब डॉलर का रहा था.
जापान में जहां बूढ़े लोगों की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है, और जन्म दर घट रही है, रोबोट की मांग में आगे और इज़ाफ़ा हो सकता है.
रोबोट ज्यादा बने तो इसका फ़ायदा उन कारोबारियों को होगा जो मज़दूरों की कमी और मज़दूरी की बढ़ती दरों से परेशान हैं. साथ ही, इससे उन घरवालों को भी आसानी होगी जिन्हें अपने बुज़ुर्गों की देखभाल के लिए किसी केयरटेकर की ज़रूरत होती है.

बराक ओबामा

रोबोट के साथ खेलते ओबामा, जापान
जापानी कार निर्माता कंपनी होंडा भी इसी से मिलता-जुलता एक घरेलू रोबोट, असीमो तैयार कर रहा है.
अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जापान की हाल की यात्रा के दौरान इस रोबोट के साथ फ़ुटबॉल खेलते देखे गए.
विश्लेषकों का मानना है कि दुनिया भर में, ख़ासकर जापान में घरेलू रोबोट की मांग बढ़ने की संभावना है, क्योंकि यहां बुज़ुर्गों की आबादी ज़्यादा है.
पेपर को बनाने वाली कंपनी सॉफ़्टबैंक ने इसे फ्रांसीसी कंपनी अलदेबरन रोबोटिक्स के साथ मिलकर तैयार किया है.
अलदेबरन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और संस्थापक ने कहा है, "संवेदनशील रोबोट हमारे जीवन को एक नया विस्तार देगें. इसके अलावा तकनीक को समझने की एक नई पहल है, पेपर."

उन्होंने आगे कहा, "ये तो बस एक शुरुआत है, इसका भविष्य बेहद उज्ज्वल है.

चंद्रमा का जन्म कैसे हुआ था?


चंद्रमा की उत्पत्ति के बारे में एक नया शोध सामने आया है. इसका मानना है कि अरबों साल पहले एक बड़ा ग्रह पृथ्वी से टकराया था. इस टक्कर के फलस्वरूप चांद का जन्म हुआ.
शोधकर्ता अपने इस सिद्धांत के पीछे अपोलो के अंतरिक्ष यात्रियों के ज़रिये चांद से लाए गए चट्टानों के टुकड़ों का हवाला दे रहे हैं. इन चट्टानी टुकड़ों पर 'थिया' नाम के ग्रह की निशानियां दिखती हैं.
शोधकर्ताओं का दावा है कि उनकी खोज पुख़्ता करती है कि चंद्रमा की उत्पत्ति टक्कर के बाद हुए भारी बदलाव का नतीजा थी.
ये अध्ययन एक साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. वैसे ये कोई नया सिद्धांत नहीं है. ये पहले से माना जाता रहा है कि चांद का उदय खगोलीय टक्कर के परिणाम स्वरूप हुआ था. हालांकि एक दौर ऐसा भी आया जब कुछ लोग कहने लगे कि ऐसी कोई टक्कर हुई ही नहीं.
लेकिन वर्ष 1980 से आसपास से इस सिद्धांत को स्वीकृति मिली हुई है कि 4.5 बिलियन साल पहले पृथ्वी और थिया के बीच हुई  टक्कर ने चंद्रमा की उत्पत्ति की थी.
"हमें इन चट्टानों को पूरे चंद्रमा का प्रतिनिधि मानने के प्रति सावधानी बरतनी चाहिए. इस लिहाज से चांद की अलग-अलग चट्टानों का विश्लेषण भी जरूरी है तभी आगे कुछ पुष्टि की जानी चाहिए."
डॉक्टर महेश आनंद
थिया का नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं में मौजूद सीलीन की मां के नाम पर रखा गया था. सीलीन को चांद की मां कहा जाता है.
समझा जाता है कि टक्कर होने के बाद थिया और धरती के टुकड़े एक दूसरे में समाहित हो गए और उनके मिलने से चांद की पैदाइश हुई.

शुरुआती विश्लेषण

ये सबसे आसान थ्योरी है जो कंप्यूटर सिमूलेशन से भी मेल खाती है. लेकिन इसकी सबसे बड़ी दिक्क़त ये है कि किसी ने भी थिया की मौजूदगी का प्रमाण चांद के चट्टानों में नहीं देखा है.
चंद्रमा पर बेशक थिया के निशान मिले हैं लेकिन इसकी संरचना आमतौर पर पृथ्वी सरीखी है. अध्ययनकर्ताओं की टीम के अगुवा यूनिवर्सिटी ऑफ गॉटिंगेन के डा. डेनियल हेवाट्ज के अनुसार, अब तक किसी को इस टक्कर सिद्धांत के इतने दमदार सबूत नहीं मिले थे.
उन्होंने कहा, ''पृथ्वी और चंद्रमा के बीच छोटे-छोटे अंतर हैं, जिसे हमने इस नमूनों में खोज निकाला है. ये टक्कर की अवधारणा को पुख्ता करता है."

चंद्रमा और पृथ्वी

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेलीडे उन वैज्ञानिकों में हैं, जो ये देखकर चकित हैं कि चांद की चट्टानों पर मिली थिया की सामग्री और पृथ्वी के बीच अंतर बहुत मामूली और सूक्ष्म हैं.
ओपन यूनिवर्सिटी के डॉक्टर महेश आनंद इस शोध को रोमांचकारी बताते हैं लेकिन वह ये भी कहते हैं, "मौजूदा तथ्य चांद के लाए गए महज़ तीन चट्टानी नमूनों के आधार पर निकाला जा रहा है."
"हमें इन चट्टानों को पूरे चंद्रमा का प्रतिनिधि मानने के प्रति सावधानी बरतनी चाहिए. इस लिहाज से चांद की अलग-अलग चट्टानों का विश्लेषण भी ज़रूरी है तभी आगे कुछ पुष्टि की जानी चाहिए."
कुछ और सिद्धांत बताते हैं कि चांद और पृथ्वी की संरचनाएं लगभग एक जैसी क्यों हैं. क्योंकि टक्कर से पहले पृथ्वी और अधिक गति से धूमती थी. एक और सिद्धांत ये है कि थिया आकार में कहीं ज्यादा बड़ा ग्रह था.

विवादित सिद्धांत

एक और विवादित सिद्धांत नीदरलैंड्स के ग्रोनिंजेन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राव डी मेइजेर का है. उनके अनुसार, पृथ्वी की सतह के करीब 2900 किलोमीटर नीचे एक नाभिकीय विखंडन के फलस्वरूप पृथ्वी की धूल और पपड़ी अंतरिक्ष में उड़ी और इस मलबे ने इकट्ठा होकर चांद को जन्म दिया.
उन्होंने बीसीसी से बातचीत में कहा कि पृथ्वी और चंद्रमा की संरचना में अंतर के नए निष्कर्षों के बाद भी उनके दृष्टिकोण में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
वह कहते हैं, "जिस अंतर के बारे में कहा जा रहा है कि वो बहुत मामूली है. हमें नहीं मालूम कि चांद का निर्माण किस तरह हुआ. ज़रूरत है कि हम चांद पर जाएं और उसकी सतह के काफी नीचे की चट्टानों को खोजें. जो अब तक अंतरिक्ष में आने वाली आंधियों और खगोलीय प्रभावों से प्रदूषित नहीं हुई हैं.''

डरावनी होती जा रही है वीडियो गेम्स की दुनिया



वीडियो गेम
वीडियो गेम्स डरावने होते जा रहे हैं. बहुत अधिक डरावने. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये अपनी हद पार करने वाले हैं?
क्लासिक डरावनी फ़िल्म दि ब्लेयर विच प्रोजेक्ट की समीक्षा करते हुए वाशिंगटन पोस्ट ने बेहद डरावना और बेचैन कर देने वाला बताया.
समाचार पत्र के मुताबिक़ लोग वास्तव में सिनेमाघरों से बाहर निकल रहे थे. अक्सर बीमार होकर.
इसके तुरंत बाद बॉक्स ऑफ़िस पर कमाई काफ़ी बढ़ गई.
इस सप्ताह लॉस एजेंल्स में आयोजित इलेक्ट्रानिक एंटरटेनमेंट एक्सपो (ई-3) में दुनिया की प्रमुख गेम्स कंपनियां जमा हुईं.
इस बार की एक बड़ी थीम थी कि गेमिंग इंडस्ट्री में भी ब्लेयर विच जैसी उपलब्धि हासिल किया जाए.

डरना मना है

वीडियो गेम
डरावने वीडियो गेम्स पहले भी आए हैं, लेकिन ज़्यादातर मामलों में हॉरर गेम्स लोगों में उत्तेजना पैदा करने के लिए होते थे, जिन्हें तैयार करना काफ़ी आसान था.
एक बड़े बजट वाले डरावने गेम डाइंग लाइट का विकास करने वाली कंपनी टेकलैंड के एक निर्माता टायमोन स्मेकताला बताते हैं, "मैं सोचता हूं कि हम इस तरह की आसान ट्रिक्स से तंग आ चुके हैं."
वो कहते हैं, "एक सुनसान जगह पर दानव... ऐसा पहले भी किया गया है और सभी जानते हैं कि सुनसान जगह पर उन्हें दानव की उम्मीद करनी चाहिए."
डाइंग लाइट एक फर्स्ट पर्सन गेम है, जिसमें खिलाड़ी को एक ऐसी जगह पर दिन-रात बिताने पड़ते हैं जहां चारो तरफ़ संक्रमित लाशें हैं.
रात के दृश्य में ये गेम अधिक बेचैनी भरा हो जाता है.
ई-3 में दूसरे डेवेलपर्स की तरह टेकलैंड की टीम भी वर्चुअल रियल्टी के साथ प्रयोग कर रही है.

वर्चुअल रियल्टी

वीडियो गेम
फेसबुक के स्वामित्व वाले ऑक्लयस रिफ्ट और सोनी के प्रोजेक्ट मॉर्फियस, दोनों की इस आयोजन में उल्लेखनीय मौजूदगी थी.
सोनी के लंदन स्टूडियो के प्रमुख डेव रैनयार्ड ने बताया, "आप जो काम कर सकते हैं, वो लगभग अकल्पनीय है."
उनका मानना है कि वर्चुअल रियल्टी डर को उस स्तर तक ले जा सकती है, जो सर्वाधिक डरावनी फिल्मों को भी पीछे छोड़ देगा.
वो बताते हैं, "वीआर (वर्चुअल रियल्टी) में, ये वास्तव में आप ही हैं. ये वास्तव में एक रोचक दार्शनिक बिंदु है: ये. वास्तव में, आप ही हैं."
प्रोजेक्ट मॉर्फियस अभी बिक्री के लिए उपलब्ध नही है, और ऑक्लयस रिफ्ट को केवल प्रोटोटाइप के रूप में खरीदा जा सकता है. अनुमान है कि 2015 या उसके बाद तक दोनों की लॉचिंग हो जाएगी.

सीमा रेखा

वीडियो गेम्स
नई तकनीक ने काल्पनिक दृश्यों को एकदम वास्तविक बना दिया है.
डाइंग लाइट के प्रमुख गेम डिजाइनर मैचे बिंकोवस्की बताते हैं, "आप वास्तव में अपनी नाक के सामने दावन को पाते हैं. मुझे उम्मीद है कि किसी को दिल का दौरा नहीं पड़ेगा."
गेमिंग डर के वास्तविक पलों को पैदा कर सकता है, जो आमतौर पर फिल्मों में सीमित रूप में था. ऐसा अत्यधिक वास्तविक दृश्यों, आवाज़ और दोतरफा बातचीत संभव होने के चलते है.
एक बड़े बजट के डरावने वीडियो गेम – दि ईवल विदइंन को बनाने वाली कंपनी बेथेस्डा में पीआर और मार्केटिंग की जिम्मेदारी संभालने वाले पीट हाइन्स बताते हैं, "मुझे भरोसा है कि शायद एक सीमा रेखा है... ये इस तरह की चीजों में एक सही संतुलन बनाने के बारे में है."