जैविक इंजीनियरिंग में एक बड़ी छलांग लगाते हुए वैज्ञानिकों ने ख़मीर का पहला सिंथेटिक गुणसूत्र (क्रोमोसोम) तैयार किया है.
इससे पहले अब तक सिंथेटिक डीएनए बैक्टीरिया जैसे सरल जीवों के लिए बनाया गया था.इसलिए ख़मीर के पहले 16 गुणसूत्रों को तैयार करना उभरते हुए सिंथेटिक बायोलॉजी विज्ञान की 'बड़ी उपलब्धि' मानी जा रही है.
शोध में ख़मीर में मौजूद मूल गुणसूत्रों को सिंथेटिक गुणसूत्रों से बदल दिया गया. वैज्ञानिकों द्वारा तैयार किया गया गुणसूत्र ख़मीर में सफलतापूर्वक काम करने लगा.
इसके बाद वैज्ञानिकों ने ख़मीर के पुनरुत्पादन का भी निरीक्षण किया ताकि इसे व्यवहारिकता की कसौटी पर कसा जा सके.
'अप्रत्यक्ष खतरे'
शोध के लिए ख़मीर का प्रयोग बहुत उपयोगी माना जाता है. बेकिंग और मद्यकरण में ख़मीर का बड़े स्तर पर इस्तेमाल होता है और भविष्य में इसके औद्योगिक इस्तेमाल की भी बहुत संभावनाएं हैं.कैलिफ़ोर्निया में एक कंपनी पहले भी सिंथेटिक बायोलॉजी की मदद से ख़मीर की ऐसी किस्म तैयार कर चुकी है जो मलेरिया की दवा का एक तत्व, आर्टेमिसिनिन पैदा कर सकती है.
शोध में वैज्ञानिकों की टीम की अगुवाई करने वाले, लैनगोन मेडिकल सेंटर न्यूयॉर्क विश्वविद्यालय के डॉक्टर जेफ़ बोएके का कहना है, "इससे सिंथेटिक बायोलॉजी की सुई सिद्धांत से हक़ीक़त की ओर बढ़ी है."
बीबीसी को दिए एक साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि शोध का परिणाम सच में रोमांचक है. उन्होंने कहा, "जिस हद तक हमने अनुक्रम बदले उसके बाद भी अंत में हमने स्वस्थ और खुश ख़मीर पाया."
नए गुणसूत्र को सिन-lll नाम दिया गया है. इसे बनाने में 273,871 डीएनए जोड़ों का इस्तेमाल किया गया है, जो ख़मीर के शरीर के मूल गुणसूत्र में मौजूद 316,667 डीएनए से थोड़ा कम है.
डॉक्टर बोएके ने बताया, "हमने उसके शरीर में 50 हज़ार से अधिक डीएनए कोड को बदल दिया था. इसके बावज़ूद ख़मीर न केवल साहसी निकला बल्कि उसने नए तरह के काम करने भी शुरू कर दिए. नए काम करने की तरक़ीब हमने उसके गुणसूत्र में मशीन की मदद से सिखाया."
ख़मीर के अंदर आए नए बदलाव का कारण रसायनिक परिवर्तन है, जिससे वैज्ञानिक उसके गुणसूत्रों में हज़ारों तरह की भिन्नता ला सकते हैं, जो जेनिटिक कोड को बदलने में मददगार होगा.
उम्मीद है कि ख़मीर के सिंथेटिक गुणसूत्रों की मदद से इसका प्रयोग उपयोगी टीकों और जीव ईंधन को बनाने में किया जा सकेगा.
आनुवांशिक संशोधन में एक जीव से दूसरे जीव के अंदर जीन को स्थानान्तरित किया जाता है, वहीं सिंथेटिक जीव विज्ञान में नए जीन का निर्माण किया जाता है.
मगर विज्ञान जगत से बाहर कुछ लोगों का मानना है कि इस शोध से वैज्ञानिक भगवान बनने की कोशिश कर रहे हैं. साथ ही वह इसके दूरगामी दुष्प्रभावों को नजरअंदाज़ कर रहे हैं.
ल्योड्स इंश्योरेंस बाज़ार ने 2009 में अपनी एक रिपोर्ट में कहा था कि नई तकनीक के खतरे अप्रत्यत्क्ष होते हैं.
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