पेपर की तरह मोड़ सकेंगे टीवी को?



इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद बनाने वाली कंपनी एलजी ने पेपर जैसे पतले दो नए टीवी स्क्रीन लॉन्च किए हैं जिनमें से एक इतना लचीला है कि उसे तीन सेंटीमीटर की गोलाई में मोड़ा जा सकता है.
 कंपनी का कहना है कि इसके ज़रिए अब टीवी को नई तरह से इस्तेमाल किया जा सकेगा.
मुड़ने वाली स्क्रीन
इस नए टीवी स्क्रीन का रेज़ोल्यूशन 1,200x810 है जिसकी वजह से इसे मोड़ने के बाद भी तस्वीरें बिगड़ती नहीं.
कंपनी को विश्वास है कि 2017 तक वो इसके ज़रिए 60 इंच का मुड़ने वाला टीवी बनाने में कामयाब होंगे.
पारदर्शी स्क्रीन
स्टफ़ टीवी के संपादक स्टीफ़न ग्रेव्स के मुताबिक, "मुड़ने वाली स्क्रीन एक बेहतरीन तकनीक है जो नए रास्ते खोलती है. ये परंपरागत स्क्रीन से ज्यादा टिकाऊ होगी. इसका मतलब है कि हम हवाई जहाज़ जैसी जगहों पर बड़ी और बेहतर स्क्रीन की उम्मीद कर सकते हैं."
कंपनी ने इस साल की शुरूआत में अपने पहले 'लचीले टीवी' की घोषणा एक इलेक्ट्रॉनिक्स ट्रेड शो में की थी.

दवा प्रतिरोधी मलेरिया का ख़तरा


मलेरिया
दक्षिण पूर्वी एशिया में दवा-प्रतिरोधी मलेरिया का तेज़ी से प्रसार हो रहा है और अब यह कंबोडिया-थाईलैंड सीमा तक पहुंच गया है.
वैज्ञानिकों का कहना है कि दवा-प्रतिरोधी मलेरिया को रोकने के लिए "कड़े कदम" उठाने की ज़रूरत है.
वैज्ञानिकों ने  'न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ़ मेडिसिन' में बताया है कि मलेरिया के बढ़ते मामलों से मलेरिया नियंत्रण के प्रयासों को गहरा झटका लगा है.

प्रतिरोधक क्षमता

एक अध्ययन में एशिया और अफ़्रीका के 10 देशों के 1000 मलेरिया मरीजों के खून के नमूनों का परीक्षण किया गया था.
इसमें पाया गया कि पश्चिमी और उत्तरी कम्बोडिया, थाईलैंड, वियतनाम और पूर्वी म्यांमार में परजीवियों ने मलेरिया के सबसे प्रभावकारी दवा अर्टीमिज़ीनिन्स के ख़िलाफ़ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर ली है.
हालांकि अफ्रीका के तीन देशों केन्या, नाइजीरिया और कांगो में प्रतिरोधी मलेरिया के साक्ष्य नहीं मिले.
यूनिवर्सिटी ऑफ़ ऑक्सफ़ोर्ड के प्रोफेसर निकोलस व्हाईट ने कहा, "प्रतिरोधक मलेरिया का असर दक्षिण पूर्वी एशिया के अधिकांश हिस्से में है. हम जितना उम्मीद करते थे, यह उससे भी बदतर है. इस दिशा में कुछ करना है तो हमें जल्दी कार्रवाई करनी होगी.''
उन्होंने कहा, ''आगे इसके प्रसार को रोकना बहुत हद तक संभव है, लेकिन मलेरिया नियंत्रण के परंपरागत तरीके पर्याप्त नहीं होंगे. हमें और अधिक कड़े कदम उठाने की ज़रूरत है और बिना देरी किए इसे दुनिया भर में सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में तरजीह देने की ज़रूरत है."

क्या हमें भविष्य के रोबोट से डरना चाहिए?

क्या हमें भविष्य के रोबोट से डरना चाहिए?

रोबोट
तकनीकी विषयों की दुनिया की सबसे पुरानी पत्रिका एमआईटी टेक्नॉलॉजी रिव्यू ने 2011 में विज्ञान की काल्पनिक कहानियों पर आधारित एक अंक निकाला था.
पत्रिका के मुताबिक़ इस अंक का उद्देश्य नई तकनीकों की पहचान करना और उन तकनीकों का हमारे जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की पड़ताल करना था.
इससे पहले भी विज्ञान गल्प या सांइस फ़िक्शन की कहानियों में इस तरह की उल्लेखनीय काम की परंपरा रही है.

1937 में एमआईटी ग्रेजुएट ने जॉन कैंपबेल ने एसटॉउंडींग स्टोरीज़ मैगज़ीन का संपादन किया था और उसका नाम बदलकर एसटॉउंडींग साइंस फ़िक्शन कर दिया था.
इसमें विश्वसनीय लगने वाले पात्रों और विज्ञान की कल्पनाओं पर ज़ोर दिया गया था.
ऐसी ही चौंका देने वाली एक कहानी हिरोशिमा बम विस्फोट की घटना से एक साल पहले की है जिसमें परमाणु बम बनाने की बात का उल्लेख हैं.

भविष्य का सामाजिक संवाद

हिरोशिमा बम विस्फोट
लेकिन भविष्य का आकलन करना मुश्किल है और अक्सर यह ग़लत साबित होता है. इसका यह मतलब नहीं कि यह एक बेकार काम है.
साइंस फ़िक्शन लेखक रॉबर्ट सेवयर 2003 में साइंस फ़िक्शन के सबसे बड़े पुरस्कार ह्यूगो अवार्ड के विजेता है.
उनका कहना है कि उनका काम भविष्य के सामाजिक संवादों की पड़ताल करना है.
राबर्ट सेवयर कुछ ऐसी बातों को लेकर बहुत आशान्वित हो जो लोगों के लिए चिंता का विषय है मसलन भविष्य की ऊर्जा संबंधी ज़रूरतें भी इनमें से एक हैं. वह अपने विज्ञान गल्प के लेखनीय दृष्टि से ऊर्जा के सतत स्रोतों का भविष्य में इतना विस्तार होते हुए देखते हैं कि ऊर्जा संसाधनों की क़ीमत लगभग शून्य हो जाएगी.
रोबोट
इसबीच अमरीका के साइंस फ़िक्शन लेखक रे कुर्जवेल 2050 की स्थिति का आकलन करते हैं जब कृत्रिम बुद्धिमता मानवीय बुद्धिमता की जगह ले लेगा.
सेवयर कहते हैं, "जब हमारे पास हमारी बुद्धिमता के बराबर और दोगुनी बुद्धिमता का मशीन होगा तो कोई कारण नहीं है कि मशीन और इंसान के बीच का यह रिश्ता सहक्रियाशिलता के बदले विरोधाभासी हो जाए."
वह आगे कहते हैं कि लोगों के लिए डर का सबसे बड़ा कारण है कि भविष्य में उसका सामना एक ऐसे बुद्धिमान रोबोट से होने वाला है जो विलक्षण बुद्धिमता वाला होगा और वह इंसान नहीं होगा लेकिन इंसानी आकांक्षाओं वाला होगा.

पेपर स्प्रे बुलेट ड्रोन


पेपर स्प्रे बुलेट ड्रोन
दक्षिण अफ़्रीका की कंपनी ने एक ऐसा ड्रोन तैयार किया है जो पेपर स्प्रे की गोलियां दाग़ता है.
दक्षिण अफ़्रीकी मूल की कंपनी डेजर्ट वुल्फ़ ने बीबीसी को बताया कि लंदन के ट्रेड शो में प्रदर्शन के बाद एक खनन कंपनी ने इसके 25 यूनिट की ख़रीद के लिए ऑर्डर दिया है.
कंपनी ने इस उपकरण को 'दंगा नियंत्रक हेलीकॉप्टर' के रूप में बाज़ार में उतारा जो 'सुरक्षा कर्मचारियों की जान को ख़तरे में डाले बिना भीड़ से निपटने' में माहिर है.
लेकिन अंतरराष्ट्रीय ट्रेड यूनियन संघ, आईटीयूसी इस उपकरण से क़्ततई सहमत नहीं है.
अंतरराष्ट्रीय ट्रेड यूनियन संघ के प्रवक्ता टिम नूनान कहते हैं, "यह मुश्किल में डालने वाला और विकास का दुश्मन है. हम सब जानते हैं कि वैध विरोध और प्रदर्शनों में शामिल लोगों या कार्यकर्ताओं पर इस तरह की तकनीक का इस्तेमाल करना ठीक नहीं है. हम इसे रोकने के लिए तुरंत क़दम उठाएंगे."

'चकाचौंध करने वाला लेजर'

पेपर स्प्रे बुलेट ड्रोन, डेजर्ट वूल्फ वेबसाइट
डेजर्ट वूल्फ पहले भी उद्योंगों को ड्रोन प्रोडक्ट बेचता रहा है.
डेजर्ट वूल्फ़ की वेबसाइट कहती है कि इसके 'स्कुंक ऑक्टाकोप्टर ड्रोन' में उच्च क्षमता वाले चार पेंटबॉल बैरल लगे हुए हैं जिसमें से प्रत्येक में प्रति सेकेंड 20 गोलियों को चलाने की क्षमता है.
कंपनी का कहना है कि इस ड्रोन को  पेपर स्प्रे के अतिरिक्त डाई-मार्कर बॉल्स और सॉलिड प्लास्टिक बॉल्स से लैस किया जा सकता है.
इस उपकरण में एक बार में ब्लाइंडिंग लेजर और भीड़ को चेतावनी देने वाले स्पीकर सहित 4,000 गोलियां को रखने की क्षमता है.
डेजर्ट वूल्फ़ के प्रबंधन निदेशक हेन्नी कीसर ने bbc को बताया, "हमें तुरंत 25 यूनिटों के ऑर्डर मिल गए."
वे आगे कहते हैं "हम ग्राहकों की पहचान जाहिर नहीं कर सकते हैं, लेकिन ये बताने की इजाजत है कि यह एक अंतरराष्ट्रीय खनन कंपनी है."

सुरक्षित समाधान

कीसर का कहना है, "हमने स्कुंक को सुरक्षा जोखिमों से बचने के लिए विकसित किया है."
पेपर स्प्रे बुलेट ड्रोन
डेजर्ट वूल्फ ने इस ड्रोन को इसी हफ्ते लंदन में प्रदर्शत किया है.
"हम एक और लोनमिन मरीकाना बर्दाश्त नहीं कर सकते. एक ऐसी तकनीक का इस्तेमाल करना जो घातक नहीं हो, मुझे लगता है ज़्यादा सुरक्षित होगा."
लोनमिन मरीकाना वो संदर्भ है, जिसमें 2012 में दक्षिण अफ़्रीका के एक प्लैटिनम खदान पर हुए वेतन विवाद में हिंसक विरोध प्रदर्शन हुआ जिसमें 44 मौतें हुई थीं.
लेकिन अभियान समूह 'रोबोट आर्म्स' की अंतरराष्ट्रीय समिति के अध्यक्ष नुएल शर्की ने चिंता जाहिर की है क इस उपकरण से विरोध को दबाने की प्रवृति और तानाशाही के बढ़ने का खतरा पैदा हो सकता है.
उनका कहना है, "हवा से प्लास्टिक बॉल या गोली दागने से लोग पंगु हो जाते हैं, मारे भी जा सकते हैं."
उन्होंने बताया, "प्रदर्शनकारियों की भीड़ पर पेपर स्प्रे करना एक तरह की यातना है जिसकी अनुमति नहीं दी जानी चाहिए."
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लीजिए आ गया एक 'दिलवाला' रोबोटः जापान


जापान का पेपर रोबोट
जापान की सॉफ़्टवेयर कंपनी सॉफ़्टबैंक ने 'पेपर' नाम का एक ऐसा रोबोट बनाया है जो आपकी संवेदनाओं, जज़्बात को समझ सकता है.
'पेपर' रोबोट इंसानी भावनाओं को समझने के लिए अपने भीतर बने इमोशनल इंजन का इस्तेमाल करता है. साथ ही, इस रोबोट में एक ऐसा कृत्रिम ख़ुफ़िया तंत्र मौजूद है जो इंसान के हाव-भाव, इशारों और बात करने के अंदाज़ को पढ़ लेता है.
कंपनी का कहना है कि आप इस रोबोट से ठीक वैसे ही बातचीत कर सकते हैं जैसे अपने किसी दोस्त या रिश्तेदारों से करते हैं. कंपनी ने बताया कि यह रोबोट कई तरह के काम भी कर सकता है.
बिक्री के लिए यह बाज़ार में अगले साल उपलब्ध होगा. क़ीमत होगी 1,930 डॉलर.

संवेदनशील

सॉफ़्टबैंक के मुख्य कार्यकारी अधिकारी ने संवाददाता सम्मेलन में बताया, "अब तक रोबोट के बारे में यही कहा जाता रहा है कि इनमें न कोई एहसास, न संवेदना और न ही दिल होता है."
उन्होंने आगे कहा, "मानव इतिहास में यह पहली बार होगा कि किसी रोबोट में दिल और संवेदनाएं भी होंगी."
जापान का पेपर रोबोट
कंपनी शुक्रवार से अपने दो स्टोर्स पर इस रोबोट के दो नमूने लोगों के सामने पेश करेगी, ताकि इच्छुक और उत्सुक लोग आकर इन्हें देख सकें, इनसे बातें कर सकें.
सॉफ़्टबैंक ने बताया कि कंपनी की देश भर में अपने कई दुकानों पर पेपर को लोगों के लिए रखने की योजना है.

बढ़ता बाज़ार

जापान दुनिया भर में रोबोट का सबसे बड़ा बाज़ार माना जाता है.
जापान का पेपर रोबोट
एक आकलन के अनुसार, साल 2012 में जापान का रोबोट से जुड़ा कुल कारोबार 8.4 अरब डॉलर का रहा था.
जापान में जहां बूढ़े लोगों की आबादी तेज़ी से बढ़ रही है, और जन्म दर घट रही है, रोबोट की मांग में आगे और इज़ाफ़ा हो सकता है.
रोबोट ज्यादा बने तो इसका फ़ायदा उन कारोबारियों को होगा जो मज़दूरों की कमी और मज़दूरी की बढ़ती दरों से परेशान हैं. साथ ही, इससे उन घरवालों को भी आसानी होगी जिन्हें अपने बुज़ुर्गों की देखभाल के लिए किसी केयरटेकर की ज़रूरत होती है.

बराक ओबामा

रोबोट के साथ खेलते ओबामा, जापान
जापानी कार निर्माता कंपनी होंडा भी इसी से मिलता-जुलता एक घरेलू रोबोट, असीमो तैयार कर रहा है.
अमरीकी राष्ट्रपति बराक ओबामा जापान की हाल की यात्रा के दौरान इस रोबोट के साथ फ़ुटबॉल खेलते देखे गए.
विश्लेषकों का मानना है कि दुनिया भर में, ख़ासकर जापान में घरेलू रोबोट की मांग बढ़ने की संभावना है, क्योंकि यहां बुज़ुर्गों की आबादी ज़्यादा है.
पेपर को बनाने वाली कंपनी सॉफ़्टबैंक ने इसे फ्रांसीसी कंपनी अलदेबरन रोबोटिक्स के साथ मिलकर तैयार किया है.
अलदेबरन के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और संस्थापक ने कहा है, "संवेदनशील रोबोट हमारे जीवन को एक नया विस्तार देगें. इसके अलावा तकनीक को समझने की एक नई पहल है, पेपर."

उन्होंने आगे कहा, "ये तो बस एक शुरुआत है, इसका भविष्य बेहद उज्ज्वल है.

चंद्रमा का जन्म कैसे हुआ था?


चंद्रमा की उत्पत्ति के बारे में एक नया शोध सामने आया है. इसका मानना है कि अरबों साल पहले एक बड़ा ग्रह पृथ्वी से टकराया था. इस टक्कर के फलस्वरूप चांद का जन्म हुआ.
शोधकर्ता अपने इस सिद्धांत के पीछे अपोलो के अंतरिक्ष यात्रियों के ज़रिये चांद से लाए गए चट्टानों के टुकड़ों का हवाला दे रहे हैं. इन चट्टानी टुकड़ों पर 'थिया' नाम के ग्रह की निशानियां दिखती हैं.
शोधकर्ताओं का दावा है कि उनकी खोज पुख़्ता करती है कि चंद्रमा की उत्पत्ति टक्कर के बाद हुए भारी बदलाव का नतीजा थी.
ये अध्ययन एक साइंस पत्रिका में प्रकाशित हुआ है. वैसे ये कोई नया सिद्धांत नहीं है. ये पहले से माना जाता रहा है कि चांद का उदय खगोलीय टक्कर के परिणाम स्वरूप हुआ था. हालांकि एक दौर ऐसा भी आया जब कुछ लोग कहने लगे कि ऐसी कोई टक्कर हुई ही नहीं.
लेकिन वर्ष 1980 से आसपास से इस सिद्धांत को स्वीकृति मिली हुई है कि 4.5 बिलियन साल पहले पृथ्वी और थिया के बीच हुई  टक्कर ने चंद्रमा की उत्पत्ति की थी.
"हमें इन चट्टानों को पूरे चंद्रमा का प्रतिनिधि मानने के प्रति सावधानी बरतनी चाहिए. इस लिहाज से चांद की अलग-अलग चट्टानों का विश्लेषण भी जरूरी है तभी आगे कुछ पुष्टि की जानी चाहिए."
डॉक्टर महेश आनंद
थिया का नाम ग्रीक पौराणिक कथाओं में मौजूद सीलीन की मां के नाम पर रखा गया था. सीलीन को चांद की मां कहा जाता है.
समझा जाता है कि टक्कर होने के बाद थिया और धरती के टुकड़े एक दूसरे में समाहित हो गए और उनके मिलने से चांद की पैदाइश हुई.

शुरुआती विश्लेषण

ये सबसे आसान थ्योरी है जो कंप्यूटर सिमूलेशन से भी मेल खाती है. लेकिन इसकी सबसे बड़ी दिक्क़त ये है कि किसी ने भी थिया की मौजूदगी का प्रमाण चांद के चट्टानों में नहीं देखा है.
चंद्रमा पर बेशक थिया के निशान मिले हैं लेकिन इसकी संरचना आमतौर पर पृथ्वी सरीखी है. अध्ययनकर्ताओं की टीम के अगुवा यूनिवर्सिटी ऑफ गॉटिंगेन के डा. डेनियल हेवाट्ज के अनुसार, अब तक किसी को इस टक्कर सिद्धांत के इतने दमदार सबूत नहीं मिले थे.
उन्होंने कहा, ''पृथ्वी और चंद्रमा के बीच छोटे-छोटे अंतर हैं, जिसे हमने इस नमूनों में खोज निकाला है. ये टक्कर की अवधारणा को पुख्ता करता है."

चंद्रमा और पृथ्वी

ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हेलीडे उन वैज्ञानिकों में हैं, जो ये देखकर चकित हैं कि चांद की चट्टानों पर मिली थिया की सामग्री और पृथ्वी के बीच अंतर बहुत मामूली और सूक्ष्म हैं.
ओपन यूनिवर्सिटी के डॉक्टर महेश आनंद इस शोध को रोमांचकारी बताते हैं लेकिन वह ये भी कहते हैं, "मौजूदा तथ्य चांद के लाए गए महज़ तीन चट्टानी नमूनों के आधार पर निकाला जा रहा है."
"हमें इन चट्टानों को पूरे चंद्रमा का प्रतिनिधि मानने के प्रति सावधानी बरतनी चाहिए. इस लिहाज से चांद की अलग-अलग चट्टानों का विश्लेषण भी ज़रूरी है तभी आगे कुछ पुष्टि की जानी चाहिए."
कुछ और सिद्धांत बताते हैं कि चांद और पृथ्वी की संरचनाएं लगभग एक जैसी क्यों हैं. क्योंकि टक्कर से पहले पृथ्वी और अधिक गति से धूमती थी. एक और सिद्धांत ये है कि थिया आकार में कहीं ज्यादा बड़ा ग्रह था.

विवादित सिद्धांत

एक और विवादित सिद्धांत नीदरलैंड्स के ग्रोनिंजेन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर राव डी मेइजेर का है. उनके अनुसार, पृथ्वी की सतह के करीब 2900 किलोमीटर नीचे एक नाभिकीय विखंडन के फलस्वरूप पृथ्वी की धूल और पपड़ी अंतरिक्ष में उड़ी और इस मलबे ने इकट्ठा होकर चांद को जन्म दिया.
उन्होंने बीसीसी से बातचीत में कहा कि पृथ्वी और चंद्रमा की संरचना में अंतर के नए निष्कर्षों के बाद भी उनके दृष्टिकोण में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
वह कहते हैं, "जिस अंतर के बारे में कहा जा रहा है कि वो बहुत मामूली है. हमें नहीं मालूम कि चांद का निर्माण किस तरह हुआ. ज़रूरत है कि हम चांद पर जाएं और उसकी सतह के काफी नीचे की चट्टानों को खोजें. जो अब तक अंतरिक्ष में आने वाली आंधियों और खगोलीय प्रभावों से प्रदूषित नहीं हुई हैं.''

डरावनी होती जा रही है वीडियो गेम्स की दुनिया



वीडियो गेम
वीडियो गेम्स डरावने होते जा रहे हैं. बहुत अधिक डरावने. ऐसे में सवाल उठता है कि क्या ये अपनी हद पार करने वाले हैं?
क्लासिक डरावनी फ़िल्म दि ब्लेयर विच प्रोजेक्ट की समीक्षा करते हुए वाशिंगटन पोस्ट ने बेहद डरावना और बेचैन कर देने वाला बताया.
समाचार पत्र के मुताबिक़ लोग वास्तव में सिनेमाघरों से बाहर निकल रहे थे. अक्सर बीमार होकर.
इसके तुरंत बाद बॉक्स ऑफ़िस पर कमाई काफ़ी बढ़ गई.
इस सप्ताह लॉस एजेंल्स में आयोजित इलेक्ट्रानिक एंटरटेनमेंट एक्सपो (ई-3) में दुनिया की प्रमुख गेम्स कंपनियां जमा हुईं.
इस बार की एक बड़ी थीम थी कि गेमिंग इंडस्ट्री में भी ब्लेयर विच जैसी उपलब्धि हासिल किया जाए.

डरना मना है

वीडियो गेम
डरावने वीडियो गेम्स पहले भी आए हैं, लेकिन ज़्यादातर मामलों में हॉरर गेम्स लोगों में उत्तेजना पैदा करने के लिए होते थे, जिन्हें तैयार करना काफ़ी आसान था.
एक बड़े बजट वाले डरावने गेम डाइंग लाइट का विकास करने वाली कंपनी टेकलैंड के एक निर्माता टायमोन स्मेकताला बताते हैं, "मैं सोचता हूं कि हम इस तरह की आसान ट्रिक्स से तंग आ चुके हैं."
वो कहते हैं, "एक सुनसान जगह पर दानव... ऐसा पहले भी किया गया है और सभी जानते हैं कि सुनसान जगह पर उन्हें दानव की उम्मीद करनी चाहिए."
डाइंग लाइट एक फर्स्ट पर्सन गेम है, जिसमें खिलाड़ी को एक ऐसी जगह पर दिन-रात बिताने पड़ते हैं जहां चारो तरफ़ संक्रमित लाशें हैं.
रात के दृश्य में ये गेम अधिक बेचैनी भरा हो जाता है.
ई-3 में दूसरे डेवेलपर्स की तरह टेकलैंड की टीम भी वर्चुअल रियल्टी के साथ प्रयोग कर रही है.

वर्चुअल रियल्टी

वीडियो गेम
फेसबुक के स्वामित्व वाले ऑक्लयस रिफ्ट और सोनी के प्रोजेक्ट मॉर्फियस, दोनों की इस आयोजन में उल्लेखनीय मौजूदगी थी.
सोनी के लंदन स्टूडियो के प्रमुख डेव रैनयार्ड ने बताया, "आप जो काम कर सकते हैं, वो लगभग अकल्पनीय है."
उनका मानना है कि वर्चुअल रियल्टी डर को उस स्तर तक ले जा सकती है, जो सर्वाधिक डरावनी फिल्मों को भी पीछे छोड़ देगा.
वो बताते हैं, "वीआर (वर्चुअल रियल्टी) में, ये वास्तव में आप ही हैं. ये वास्तव में एक रोचक दार्शनिक बिंदु है: ये. वास्तव में, आप ही हैं."
प्रोजेक्ट मॉर्फियस अभी बिक्री के लिए उपलब्ध नही है, और ऑक्लयस रिफ्ट को केवल प्रोटोटाइप के रूप में खरीदा जा सकता है. अनुमान है कि 2015 या उसके बाद तक दोनों की लॉचिंग हो जाएगी.

सीमा रेखा

वीडियो गेम्स
नई तकनीक ने काल्पनिक दृश्यों को एकदम वास्तविक बना दिया है.
डाइंग लाइट के प्रमुख गेम डिजाइनर मैचे बिंकोवस्की बताते हैं, "आप वास्तव में अपनी नाक के सामने दावन को पाते हैं. मुझे उम्मीद है कि किसी को दिल का दौरा नहीं पड़ेगा."
गेमिंग डर के वास्तविक पलों को पैदा कर सकता है, जो आमतौर पर फिल्मों में सीमित रूप में था. ऐसा अत्यधिक वास्तविक दृश्यों, आवाज़ और दोतरफा बातचीत संभव होने के चलते है.
एक बड़े बजट के डरावने वीडियो गेम – दि ईवल विदइंन को बनाने वाली कंपनी बेथेस्डा में पीआर और मार्केटिंग की जिम्मेदारी संभालने वाले पीट हाइन्स बताते हैं, "मुझे भरोसा है कि शायद एक सीमा रेखा है... ये इस तरह की चीजों में एक सही संतुलन बनाने के बारे में है."

सौर आंधी की वज़ह से कड़कती है बिजली



बिजली
एक अध्ययन के मुताबिक़ सूरज पर होने वाली गतिविधियों की वज़ह से धरती पर बिजली गिरती है.
वैज्ञानिकों ने अध्ययन में पाया है कि तेज़ गति के सौर कणों का झोंका जब वायुमंडल में प्रवेश करता है तो बिजली बोल्ट की संख्या बढ़ जाती है.
यह शोध इनवायरनमेंटल रिसर्च लेटर्स नाम के जर्नल में प्रकाशित हुआ है.
अब जबकि सूरज पर होने वाली गतिविधियों पर सैटेलाइट के द्वारा बारीकी से नज़र रखी जाती है इसलिए यह संभव है कि सौर कणों की ख़तरनाक आंधी के धरती के वायुमंडल से टकराए जाने का पूर्वानुमान लगाया जा सके.

प्रभाव

यूनिवर्सिटी ऑफ रीडिंग के प्रमुख शोधकर्ता डॉ क्रिस स्कॉट ने कहा, " बिजली काफ़ी ख़तरनाक होती है. हर साल 24 हज़ार लोग बिजली के आघात से मारे जाते हैं. इसलिए सौर कणों की आंधी की कोई भी पूर्व चेतावनी काफ़ी उपयोगी साबित होगी. "
सौर आंधी
सौर कणों की आंधी के धरती के वातावरण में प्रवेश करने के साथ ही उत्तरी ध्रुव पर प्रकाश फैल सकता है, लेकिन शोध बताता है कि कैसे ये मौसम को भी प्रभावित कर सकता है.
डॉ स्कॉट ने कहा, " सौर आंधी लगातार एक जैसी नहीं रहती, यह तेज़ और धीमी होती रहती है. चूंकि सूरज घूमता रहता है इसलिए ये धाराएँ एक दूसरे का पीछा करती रहती है इसके चलते यदि तेज़ सौर आंधी का पीछे धीमी सौर आंधी है तो इससे सौर कणों की सघनता बढ़ जाती है. "
वैज्ञानिकों ने पाया कि जब सौर कणों की आंधी की गति और प्रबलता बढ़ती है तो बिजली गिरने की दर भी बढ़ जाती है.
शोधकर्ता दल ने कहा, " सौर कणों के धरती के वातावरण से टकराने के बाद एक महीने तक मौसम अशांत रह सकता है. "

प्रक्रिया

शोधकर्ताओं ने उत्तरी यूरोप के आकड़ों का इस्तेमाल करके यह पाया कि 400 दिनों में 321 बिजली गिरने की घटना की तुलना में तेज़ गति वाले सौर आंधी के बाद 400 दिनों में औसतन 422 बिजली गिरने की घटना हुई.
उत्तरी ध्रुवीय प्रकाश
डॉ स्कॉट ने कहा, " यह चौंकाने वाला परिणाम था क्योंकि पहले यह सोचा गया था कि सौर आंधी में बढ़ोत्तरी का उल्टा असर होगा. "
शोधकर्ता दल इसकी प्रक्रिया को लेकर वास्तव में आश्वस्त नहीं है लेकिन उन्होंने कहा कि सौर कण बादलों में प्रवेश करके विद्युत ऊर्जा को बिजली में तब्दील कर देता है.
हालांकि इसकी प्रक्रिया से संबंधी सवालों के जवाब अभी भी अधूरे हैं. लेकिन सौर कणों के पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश करने से संबंधी बहुत सी जानकारियां मौजूद हैं जो सौर आंधी की भविष्यवाणी करने में मदद कर सकती हैं
अध्ययन के आंकड़े यूरोप में इकट्ठे किए गए है लेकिन शोधकर्ताओं का मानना है कि इसका प्रभाव विश्वव्यापी होगा.

सबसे ख़तरनाक डायनोसोर 'पिनोकियो'?


नया टायरेनोसोरस
लंबी नाक वाले एक नए टायरेनोसोरस डायनोसोर का पता चला है. शोधकर्ताओं ने इसे 'पिनोकियो रेक्स' नाम दिया है.
नौ मीटर लंबा, ख़ास तरह की नुकीली नाक वाला यह उग्र मांसभक्षी 'टायरेनोसोरस रेक्स' ही प्रजाति का बताया जा रहा है.
'पिनोकियो रेक्स' का कंकाल चीन में सड़क निर्माण के दौरान की गई खुदाई में पाया गया है. इसकी पहचान ब्रिटेन के एडिनबरा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने की है.
6.6 करोड़ साल पुराने इस हिंसक जानवर को आधिकारिक रूप से 'कियांझाऊसोरस साइनेंसिस' रखा गया है.

ऑनलाइन साइंस जर्नल 'नेचर कम्युनिकेशन' में इसका ज़िक्र किया गया है. 'पिनोकियो' दूसरे टायरेनोरस से अलग दिखता है.

पिनोकियो की लंबी नाक

एडिनबरा विश्वविद्यालय के डॉक्टर स्टीव ब्रूसेट ने बताया, "इसके दांत तो टी. रेक्स से मिलते जुलते हैं, लेकिन इसकी नाक ज्यादा लंबी और पतली है, जिसके अगले सिरे पर कांटों की कतार दिखती है."
नए टायरेनोसोरस का कंकाल
स्टीव ब्रुसेट ने आगे कहा, "हो सकता है कि ये आपको कुछ हास्यास्पद दिखाई दे, लेकिन ये किसी भी अन्य टायरेनोसोरस की तरह ही खूंखार होता, बल्कि संभव है कि उनसे ज़्यादा फुर्तीला और छिप कर वार करने वाला हो."
उन्होंने कहा, "हमें इसे पुकारने के लिए एक नाम चाहिए था. इसकी लंबी नाक देखकर हमें पिनोकियो याद आ गया, इसलिए हमने इसे यही नाम दिया है."
शोधकर्ताओं का अब मानना है कि एशिया में डायनोसोर के क्रिटेशियस युग के अंतिम दिनों में, जो कि डायनोसोर के भी अंतिम दिन थे, शिकार करने वाले कई अलग-अलग तरह के टायरेनोसोरस होते थे.
तेरह मीटर तक लंबे विशालकाय टर्बोसोरस के टी. रेक्स जितने गहरे और शक्तिशाली जबड़े थे जो बड़े-बड़े शाकाहारियों की हड्डी चबा जाने की ताकत रखते थे.
जबकि नौ मीटर लंबे कियांझाऊसोरस के बारीक दांतों को देखकर ये अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि ये पंख वाले डायनोसोर और छिपकली जैसे छोटे जीव-जंतुओं को अपना शिकार बनाता था.

टायरोनोसोर की नई प्रजाति

पिनोकियो की नाक का आकार अपनी तरह के जानवरों की अपेक्षा 35 फीसदी बड़ा था, लेकिन उसका चेहरा आखिर इतना लंबा क्यों है?
खुदाई स्थल पर दो वैज्ञानिक
डॉक्टर ब्रुसेट ने बीबीसी को बताया, "हक़ीक़त ये है कि हम इसका कारण अब तक पता नहीं लगा पाए हैं, लेकिन ज़रूर यह किसी खास गतिविधि के कारण होगा."
वो बताते हैं, "यह नया डायनोसोर हल्का और अपेक्षाकृत कमजोर मांसपेशियों वाला था. संभवतः यह ज़्यादा तेज़ी से अपने शिकार पर झपटता होगा. टायरेनोसोरस टी. रेक्स सभी डायनोसोर में सबसे ख़तरनाक और घातक है."
पिनोकियो के सामने आने से विचित्र टायरनोसोरस के एक के बाद एक मिल रहे जीवाश्मों पर चल रही बहसों पर विराम लगता दिखता है.
टायरेनोसोरस उद्भव का अध्ययन करने वाले विशेषज्ञ डॉक्टर ब्रुसेट ने बताया, ''कियांझाऊसोरस का नमूना एक वयस्क का है और इसे खुदाई के समय बहुत संभाल कर निर्माण करने वाले मज़दूरों ने निकाला.''
इसे दक्षिणी चीन में गंझाऊ के नज़दीक सड़क निर्माण के दौरान खुदाई में पाया गया था. जहां तक पिनोकियो की नाक का सवाल है, वैज्ञानिक उम्मीद कर रहे हैं कि इसके जबड़े के जैव रासायनिक अध्ययन से इसका जवाब मिल सकेगा.

हाल के वर्षों में मंगोलिया में खुदाई के दौरान दो असाधारण कंकाल मिले हैं. इन्हें टायरेनोसोरस प्रजाति की बिलकुल नई शाखा से संबंधित माना जा रहा है.

सूरज के पास जाने की तैयारी


ब्रिटिश कंपनी बनाएगी सौर कक्षा में भेजने वाला उपग्रह
ब्रिटेन उस अंतरिक्ष यान को बनाने की प्रक्रिया का नेतृत्व करेगा जो सूर्य की कक्षा में उसके चारों ओर चक्कर लगाएगा.
ये अंतरिक्ष यान बुध ग्रह की कक्षा के भीतरी ओर से तस्वीरें लेगा, जिससे सूर्य की भीतरी गतिविधियों के स्रोत का पता चल सकेगा.
यूरोपीय अंतरिक्ष एजेंसी ने ब्रिटेन की कंपनी एस्ट्रियम यूके से इस उपग्रह को बनाने का समझौता किया है जिसे वर्ष 2017 में प्रक्षेपित करने की योजना है.
ये सौदा तीस करोड़ यूरो यानी लगभग पच्चीस करोड़ पौंड में हुआ है.
पेरिस स्थित इस एजेंसी का ब्रिटेन की किसी कंपनी से ये अब तक के सबसे बड़े सौदों में से एक है.
इतिहास पर नजर दौड़ाएं तो ये समझौता लगभग ऐसे समय पर हुआ है जब अंतरिक्ष के क्षेत्र में ब्रिटेन की गतिविधियों के पचास साल पूरे हुए हैं.
26 अप्रैल 1962 को एरियल-1 उपग्रह के प्रक्षेपण के साथ ही ब्रिटेन अंतरिक्ष में उपग्रह भेजने वाले देशों में शामिल हुआ.
सूर्य की कक्षा में प्रक्षेपित होने के बाद ये उपग्रह सूर्य परिवार के काफी नजदीक तक पहुंच जाएगा.
ये सूर्य से करीब चार करोड़ 20 लाख किलोमीटर की दूरी के दायरे में निकटता बनाएगा ताकि वैज्ञानिक सूर्य से निकलने वाली ऊर्जा का अध्ययन कर सकें.

समस्या

एस्ट्रियम यूके में विज्ञान विभाग के प्रमुख डॉ. राल्फ कॉर्डे का कहना है कि इस अभियान में ऊष्मा या गर्मी एक बड़ी समस्या है.
"हम इतने ज्यादा तापमान को सहने वाली एक शील्ड तैयार करेंगे जो इस तापमान को कम कर सके"
डॉ. राल्फ कॉर्डे, वैज्ञानिक
उन्होंने कहा, ''इसे पर्याप्त सुरक्षित बनाने की जरूरत है, क्योंकि इस अंतरिक्ष यान को पांच सौ डिग्री तापमान सहन करना होगा, जो पर्याप्त सुरक्षा के अभाव में विनाशकारी हो सकता है.''
उनका कहना था, ''हम लोग इतने ज्यादा तापमान को सहने वाली एक शील्ड तैयार करेंगे जो इस तापमान को कम कर सके.''
वैज्ञानिकों का कहना है कि इस मिशन से ये जानकारी भी मिल सकेगी कि कैसे सूर्य के चारों ओर हीलियोस्फियर का निर्माण होता है जिसकी वजह से सूर्य के चारों ओर का तापमान इतना ज्यादा होता है.
ये मिशन यूरोपीय स्पेस एजेंसी और अमरीकी स्पेस एजेंसी अर्थात् नासा का संयुक्त उपक्रम है. नासा इस मिशन को रॉकेट जैसे उपकरण प्रदान करेगा.
source bbc hindi